भोजन के जटिल पोषक पदार्थो व बड़े अणुओं को विभिन्न रासायनिक क्रियाओं और एंजाइम की सहायता से सरल, छोटे व घुलनशील अणुओं में बदलना पाचन कहलाता है। तथा जो तंत्र यह कार्य करता है। पाचन तंत्र कहलाता है।
इसके मुख्य रूप से दो भाग है।
a. पाचन अंग
मुख गुहा
ग्रसनी
ग्रासनाल
अमाशय
छोटी आंत
बड़ी आंत
मल द्वार
b. पाचन ग्रंन्थियां
लार ग्रंन्थि
यकृत ग्रंन्थि
अग्नाशय
मुख गुहा में निम्न संरचनाएं होती है।
दांत
मनुष्य के एक जबड़े में 16 दांत व दानों जबड़ों में 32 दांत होते है। दुधिया(अस्थाई) दांत 20 होते है। मनुष्य में चार प्रकार के दांत पाये जाते है।
1. कृंतक - सबसे आगे के दांत भोजन को कुतरने व काटने का कार्य करते है। प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते है। एक और 2 दांत होते है।
2. रदनक - भोजन को चिरने फाड़ने कार्य करते है। मासाहारीयों में अधिक विकसीत होते है। प्रत्येंक जबड़े में 2-2 होते है।
3. चवर्णक - चबाने कार्य करते है। प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते है।
4. अग्र चवर्णक - ये भी चबाने का कार्य करते है। प्रत्येक जबड़े में 6-6 होते है।
अन्तिम चवर्णक दांत को अक्ल जाड़ कहते है।
जीभ
मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रंन्थियां पाई जाती है। लार की प्रकृति हल्की अम्लीय होती है।
लार में टायलिन एन्जाइम पाया जाता है। यह एन्जाइम स्टार्च का पाचन करता है।
भोजन का पाचन मुंह से शुरू हो जाता है।
यह पाइप के समान संरचना है। इसमें कोई पाचन ग्रंन्थि नहीं होती है। यह भोजन को मुख गुहिका से अमाशय तक पहुंचाती है।
यह भोजन का अस्थाई अण्डार होता है। इसमें भोजन लगभग 3-4 घण्टे तक रूकता है। इसमें जठर रस स्त्रावित होता है। जठर रस में HCl, पेप्सीन, रेनिन, म्यूकस(श्लेष्मा) होती है।
पेप्सीन - प्रोटिन का पाचन।
रेनिन - दुध का पाचन(दुध को दही में बदलता है)।
म्यूकस अमाशय की दीवार पर दक्षात्मक आवरण बनाती है। अमाशय को पेप्सीन व HCl से बचाने के लिए। जठर रस अम्लिय होता है।
अमाशय में कार्बोहाइड्रेट का अपघटन नहीं होता, बल्कि प्रोटिन का अपघटन होता है।
पेप्सीन एन्जाइम द्वारा अमाश्य की दीवार का आंशिक पाचन अल्सर कहलाता है।
अमाशय में लुगदी समान भोजन काइम कहलाता है।
यकृत में पित्तरस का निर्माण और पित्ताशय में संग्रह किया जाता है।पित्तरस में कोई भी एन्जाइम नहीं पाया जाता है। परन्तु यह भोजन के अम्लीय माध्यम को उदासीन बनाकर क्षारीय में परिवर्तीत करती है ताकि अग्नाश्य रस में उपस्थित एन्जाइम कार्य कर सके।
यकृत के द्वारा जहर से मृत्यु होने कि जानकारी प्राप्त होती है।
पोलीयो नामक रोग यकृत के कारण ही होता है।
ट्रिपसीन - प्रोटीन अपघटन।
एमाइलेज - कार्बोहाइड्रेट अपघटनकारी।
लाइपेज - वसा अपघटनकारी।
भोजन का सर्वाधिक अवशोषण होता है। भोजन का पाचन भी यहीं होता है। इसमें दो ग्रंन्थियों द्वारा रस आता है।
1. यकृत 2. अग्नाश्य
मासाहारी की छोटी आंत छोटी होती है। शाकाहारी की बड़ी।
इसमें कोई पाचन क्रिया नहीं होती केवल जल व खनिज लवणों का अवशोषण । अपचित भोजन रेक्टम में मलद्वार के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
छोटी आंत व बड़ी आंत का जोड़ सीकम कहलाता है। सीकम के आगे अंगुठेदार संरचना एपेन्डिक्स कहलाती है।